Friday, February 22, 2008

बस तेरी याद के साये है पनाहों की तरह

आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यों हैंजख्म हर सर पे हर हाथ में पत्थर क्यों है
— सुदर्शन फ़ाकिर
सुदर्शन फाकीर यांचे 1९ रोजी निधन झाले।
कुठे बातमी आली नाही।
कुणी दखल घेतली नाही।
शब्दांचा हा पुजारी गेला तेव्हा
कुठेही चार ओळी आल्या नाहीत।
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी या गझलची नव्याने महती सांगायाची गरज पडू नए असे मला वाटते।
प्रेम, भावना, सामाजिक सन्दर्भ अशा ताकादिने दिले की अश्रु यावेत.
सामने है जो उसे लोग बुरा कहते है
जिसको देखा ही नही उसको खुदा कहते है।
असे सांगताना त्यानी जगाची रीतच सांगून टाकली.
फासले उम्र के कुछ और बढ़ा देती है,
जाने क्यों लोग उसे फिर भी दवा कहते है।
चंद मासूम से पत्तो का लहू है फाकीर,
जिसको महबूब के हाथों की हीना कहते है.
या कल्पना विचार करायला लावतात.
जगजीत सिंग यानी फाकिर यांच्या
सुंदर गझल गायल्या आहेत।
फाकिर यांना श्रध्धांजलि।
हर तरफ़ जिस्ट की रहो मी कड़ी धुप है दोस्त,
बस तेरी याद के साये है पनाहों की तरह।
एवढे आपन म्हणू शकतो.
har taraf ziist kii raaho.n me.n ka.Dii dhuup hai bas terii yaad ke saaye hai.n panaaho.n kii tarah

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